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Showing posts from December, 2022

डॉ. अलका वर्मा जी की गजल दिल को अब आराम कहां है

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  डॉ. अलका वर्मा दिल  को  अब  आराम  कहां है तुम बिन सुबह ओ शाम कहां है मात - पिता   की   पूजा   होती ऐसा    कोई    धाम    कहां    है सर्वधर्म    समभाव    जहां    हो बोलो !   ऐसा   गाम    कहां   है वनवासी   हो   वचन    निभाए वैसा    कोई    राम    कहां    है जो   बागों   को   महका   देता पहले -सा अब  आम   कहां   है ....................................... इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास हैं।           धन्यवाद। Read more 👇 डॉ. अलका वर्मा जी की कविता उत्तर दे सियाराम यादव मयंक जी की गजल   ‘द्वापर गाथा’ महाकाव्य का  काव्य-प्रसंग - डॉ. विनय कुमार चौधरी युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाकाव्य), 2012 का जीवन-मूल्य  डॉ. अलका वर्मा जी की लघुलथा यूट्यूब पर Tap on link to read more 👇 सुरेन्द्र भारती जी की गजल भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता अभाव  डॉ अलका वर्मा जी का परिचय डॉ अलका वर्मा  पूर्व प्राचार्य  त्रिवेणीगंज ,सुपौल 852139 बिहार मो 7631307900 ई मेल dralka59@gmail.com नाम: डॉ अलका वर्मा  पिता का नाम:स्व

डॉ. इन्दु कुमारी जी की रचना मेहनत के मोती, अपमान

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डॉ. इन्दु कुमारी     हिन्दी विभाग भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय  लालू नगर मधेपुरा बिहार   मेहनत के मोती किनारे बैठ जाने से कोई मोती तो नहीं मिलता। बिना बागों को सींचे ही, कोई फूल नहीं खिलता। बैठे यूं ही सोच जाएंगे आसमां को झुकाने की। लगाओ आग दिलों में, एक जोश दिखाने की। कड़ी मेहनत के दम पर ,मंजिल तो मिलती है। कदम कदम पर कांटे हैं, कोई फूल नहीं बोता। सपने जो सजाते हैं, गाफिल होकर नहीं सोता। बिना लक्ष्य के चलना, मंजिल तक नहीं जाती। कहीं चलने से पहले ही, ठिकाने ढूंढ है लेता। किनारे बैठ जाने से कोई मोती तो नहीं मिलता।  आलस्य वह दीमक है, जो बढ़ने ही नहीं देता। सारे सपने को खा जाते, सपने सजाने ना देता। आग लगा दो पानी में, शिखर के पार जाओगे। सारी मुसीबतों को , पानी तुम तो ही पिलाओगे। ............................................................ अपमान   क्यों करता अपमान किसी का, तूने कभी यह सोचा है। दुख दर्द भी होता होगा, क्या ऐसा सोच कर देखा है। सब कुछ नश्वर है जगत में, क्षणभंगुर संसार है। क्यों घमंड में घूम रहे हो, क्या यही तुम्हारा प्यार है। सब जीवो का स्वरूप है अपना, सबकी अपनी रेखा है।

सुरेन्द्र भारती जी की गजल भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों

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सुरेन्द्र भारती विमल भारती भवन त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल, बिहार मो-9570323666   भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों क्यों पहेली बुझा रहे हो दोस्तों? उजड़ी हुई जिन्दगी की राहों में क्यों बहार ला रहे हो देस्तों? रूठी बहारें क्यार के झोंकों में क्यों झूला झूला रहे हो दोस्तों? काली-काली धटाएँ की छाँहों में क्यों राह भटका रहे हो दोस्तों? मुरझा गये हैं सभी गुल गुलशन में क्यों मुझे इलजाम लगा रहे हो दोस्तों? लुट गये इश्क की जुदाई वेला में क्यों आशा बँधा रहे हो दोस्तों? उठा तूफां भारत भारती वतन में क्यों शमा जला रहे हो दोस्तों? ........... इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास हैं।           धन्यवाद। Tap on link to read more👇 भोला पंडित "प्रणयी" जी के गीत-खण्ड ' खर्च हुए हैं पिघल-पिघल कर'  सुबोध कुमार "सुधाकर" जी की रचना मुझको कोई बुला रहा है। सुरेन्द्र भारती जी(गीतकार) के गीत चुपके से सनम तुम आ जाना जल - ई. आलोक राई कवि महेन्द्र प्रसाद जी की कविता प्रगति-पथ   सुरेन्द्र भारती जी के कविता के लिंक Will be updated soon   ध्रुव

शंभुनाथ अरूनाभ (कवि और लेखक) जी की कविता मार्केटिंग यार्ड

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शंभुनाथ अरूनाभ (कवि और लेखक)   मार्केटिंग यार्ड खाली-खाली मार्केटिंग र्याड भर जाएगा कुछ ही क्षणों में जैसे भर जाते हैं  अगहन में किसानों के बखार औरतें आएँगी टोकरी के साथ टोकरी में चावल चूड़ा सब्जियाँ मन में टोकरीर भर दुश्चिंताएँ औरते आएँगी झूर्रीदार एवं झुलसे चेहरों के साथ जिनकी आत्मा होगी सफेद टोकरी की मूली सी जो  उपजाती है –मूली, गाजर, टमाटर अपने  खेतों में दया ममता करूणा  अपने दिलों  में औरतें आएँगी जिन्हें नहीं मालूम कि आज टी. वी. पर क्या है कि क्या होती है सौंदर्य प्रतियोगिता कि किस  देश में छिड़ा है गृहयुद्ध कि किस तरह उगाया जा रहा है कठिनाइयों का पहाड़ कि रचा जारहा है षड़यन्त्र रोने के अधिकार को भी छिनने का औरतें आएँगी  जिनकी सहेली है फाँकाकथी जिन्हें मिलती है-सूखी रोटियाँ, चुटकी भर नमक, हरी मिर्च के साथ पति के प्रताड़ना का सालन औरतें आएँगी अपने पीछे नन्हें-नन्हें बच्चों को छोड़कर जैसे ही संध्या पाखी पसारने को होगी अपने पंख बहुत बहुत हड़बड़ाएँगी वे कि सब्जियाँ पड़ी हैं कि बच्चे भूख से टौआते होंगे। औरतें जल्दी-जल्दी बढाएँगी अपने कदम अँधकार में अँधकार में डूबता सा लगेगा सारा वजूद