प्रतिभा कुमारी जी की गजलें
प्रतिभा कुमारी त्रिवेणीगंज, सुपौल गजल ये फासले क्या कभी कम ना होंगे मैं और तुम क्या कभी हम ना होंगे दर्दे जिगर जो हद से बढ़े भी तो, नैना हमारे कभी नम ना होंगे। बचपन से सीखा हमने गणित में.. सम ओ विषम मिल कभी सम ना होंगे। भले टूट जाएं अपनों को फिर भी, अपनी वजह से कभी गम ना होंगे। देती है पीड़ा अपने ही हमको, गैर में इतना कभी दम ना होंगे। दीप उर्मिला का बन हम जलें ती.. पथ में लखन के कभी तम ना होंगे। भुलाने को हम पिए जा रहे पर, खारे आंसू कभी रम ना होंगे। गजल कोई गम नहीं है उस बात की। तकाजा रही होगी हालात की। जिंदा है जख्म उल्फत के अब तक, मरहम नहीं है उर आधात की। गरज परस्त दुनिया में यह जान ले, कीमत नहीं कोई जज्बात की। संभाली थी अब तक आंखें जिसे, बरस ही गई आज बिन बात की। रचबस गई मेरे सांसों में जो, कस्तूरी महक वह हंसी रात की। भले भूल जाओ प्रतिभा को मगर.. कसक तो रहेगी उन लम्हात की। एक कप चाय संवेदनाओं की आँच पर जब दूध-सा भावनाएँ उफनती है तेरी यादों की तासीर जब उसमें पत्ती-सी मिलती है बड़े शिदत्त से प्रीत तब शक्कर-सी घुलती है कतरे कतरे इश्क को निगाहें छान लेती है तब कहीं जाके तेरे सामने ...