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Showing posts from August, 2023

जन लेखक संघ के महासचिव महेन्द्र नारायण पंकज जी के प्रबंधकाव्य की कुछ पंक्तियाँ

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डॉ. महेन्द्र नारायण पंकज महासचिव, जन लेखक संघ युवा वर्ग ही नये राष्ट्र का, बन पाता निर्माता है। जब-जब देश होता है दुर्बल, वह नूतन शक्ति जगाता है।। त्यागी, स्वार्थ रहित मानव जब जनहित में कुछ करता है। इसमें क्या सन्देह वही, जनगण में नवबल भरता है।।                                                                                                                                                    डॉ. महेन्द्र नारायण पंकज   इस ब्लाग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकार उनके पास है। धन्यवाद। संक्षिप्त परिचय जन्म- थाना-कुमारखण्ड, जिला- मधेपुरा (बिहार) शिक्षा- एम. ए, ग्राम- भतनी, बी. टी. साहित्याचार्य उपाधियाँ – ‘शिक्षा-श्री’ अखिल भारतीय शिक्षा साहित्य कला विकास समिति, बहराइच (उत्तर प्रदेश), आचार्य पानीपत साहित्य अकादमी, पानीपत (हरियाणा)। सम्मान- ‘कला सम्मान’ (प्रगतिशील लेखक संध, पूर्णियाँ), ‘डा. अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान’ (भारतीय दलित साहित्य अकादमी, दिल्ली 1996 ई.), ‘राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान’ (विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर नई दिल्ली में 2000 ई.)

गोपाल सिंह 'नेपाली' के काव्य में राष्ट्रीय चेतना - नवल भास्कर

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         नवल भास्कर         शोधार्थी , हिंदी विभाग   भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय  लालू नगर मधेपुरा गोपाल सिंह 'नेपाली' के काव्य में राष्ट्रीय चेतना ।            गीतों के राजकुमार , प्रकृति प्रेमी कवि गोपाल सिंह ’नेपाली’ के हृदय में राष्ट्रभक्ति , राष्ट्रप्रेम और चेतना दिलो-दिमाग में इस तरह बस गया था कि वह अपनी रचना में सभ्यता संस्कृति , शासन , संप्रभुता  और जनजागृति के साथ युगबोध का अंगूठा छाप हम सभी के बीच छोड़ गए । उनकी राष्ट्रीय चेतना में देश के प्रति गहरा भाव झलकता है । जिस तरह से साहित्य हमारे समाज को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए अपनी अहम भूमिका निभाते हैं उसी के सापेक्ष हर दृष्टिकोण से नेपाली जी की अधिकांश रचना समाज को नई गति प्रदान करता है ।       वह सच्चे अर्थों में भारत माता के ऐसे सपूत थे जिन्होंने सेवा फल का ना तो स्वाद चखे ना ही मन में कभी इच्छा हुई । केवल समस्त जनमानस के पटल पर राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए हमेशा नि:स्वार्थ , नि:संकोच अपनी रचना राष्ट्र हित के लिए गढ़ते गए । राष्ट्रीयता से ओत_ प्रोत रचना देशगाण अभी भी कहीं गाया जाता है तो सुनकर रोम-रोम पु