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डॉ. विश्वनाथ सराफ की कविता छप्पन ईंच का धीरज

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डॉ. विश्वनाथ सराफ त्रिवेणीगंज, सुपौल बिहार मो. नं. : 94314506 एक परिचय- पेशे से चिकित्सक डा विश्वनाथ सराफ यों तो मरीजों की नाड़ियाँ देखते हैं और दवा देते हैं लेकिन जब माइक पकड़ते हैं तो अपनी कविताओं से व्यंग एवं हास्य का श्रोताओं को मरहम भी लगाते हैं। अच्छे वक्ता, मंच संचालक के साथ ही इनकी राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बराबर भागीदारी रहती है, ये जिला एथेलेटिक्स एसोसियन के अध्यक्ष भी है।  प्रस्तुत है उनकी एक कविता - छप्पन ईंच का धीरज        रूको रूको अब मत निकलो तुम लोग यहाँ के सहनशील हैं सब सह लेगें सड़कों पर कोरोना है आसमान से गिरता पानी एक ओर सागर की गरज है एक ओर चक्रवाती आँधी लोग यहाँ के बहुत साहसी तुफानों में भी पल लेगें मंदिर, मस्जिद बंद पड़े हैं गंगा जी में कुम्भ लगा है रेत किनारे ढ़ेर शवों का  ना जाने कब कौन मरा है लोग यहाँ के धैर्यवान है पथ्थर बनकर भी रह लेगें छप्पन ईंच का सीना लेकर महलों के भीतर तुम रह लेना शीशें की दीवारों के पीछे से मन की बातें तुम कह लेना लोग यहाँ के अच्छे श्रोता हैं मनोयोग से सब सुन लेगें रूको-रूको अब मत निकलो तुम लोग यहाँ के सहनशील हैं