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डॉ. सुषमा दयाल जी की रचना “चौखट से चाँद तक”

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  डॉ. सुषमा दयाल वरीय शिक्षिका, एम एस कुशहा त्रिवेणीगंज सुपौल। एक पड़ी सबपे भारी हर लड़की ज्योति नही बनेगी पद पाते पति को ही छोड़ देगी। जरा शर्म करो ,जिसने तेरे साथ लिए थे सात फेरे परिजनों के सामने जिसने थामा तेरा हाथ आज तूने छोड़ दिया उसका ही साथ।। तुमने तो दिखा दी अपनी औकात औरतों को तुमने किया कलंकित बहुओं को आगे बढ़ने से किया प्रतिबंधित।। माफ नही करेगी तुम्हारी ही बेटियां, कितनी सुननी पड़ेगी उल्टी सीधी खड़ी खोटियां।। जरा तो सोच लेती भविष्य को पत्नी होने के अस्तित्व को।। शराबी पति को भी नारी ने व्रत त्योहार करके लोक लाज को ढोकर जीवन को संभाला है। तूने तो जीते जी आलोक के रहते मनीष जी के साथ प्रेम  करके अपने ही चरित्र का किया  घोटाला है।। कितनी बददुआ तुम्हे है,मिल रही कोई नही कह रहा तुम्हे सही। काम ही तुमने ऐसा किया है समाज में ज्योति फैलाने की जगह कीचड़ उछाला है।। सुख के दिन मै तुम्हे कोई और भा गया, खून पसीना एक कर  पति ने तुम्हे पढ़ाया,  इसी की सजा तूने उसे फूट फूट कर रुलवाया।। बहुत अरसों के बाद ही तो समाज में लोगों का नजरिया बदला था, बेटी बहुओं को एक  समान मौका मिला था। पढ़ने का आगे