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डॉ. अलका वर्मा

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डॉ. अलका वर्मा त्रिवेणीगंज, सुपौल बिहार मो- 7631307900 ई मेल- dralka59@gmail.com   गजल   दिल रोता है जब रिसती है कविता चीर चट्टानों को बहती है सरिता। अपनी ही देख दुर्दशा इस जग में चीखती, तड़पती, रोती है बबिता। करती प्रकाशित पूरे संसार को  निशिवासर चल कभी न थकती सविता। घबराओ नहीं रखो विश्वास सदा  तेरा भला ही करेंगे परमपिता। मां ममता का अनमोल है खजाना तो रखवाला है परिवार का पिता। ग़ज़ल   मित्रता का न मोल समझ लो धन सके नहीं तोल समझ लोl यारी हो कृष्ण सुदामा सी मित्रों की जय बोल समझ लो। अपने दिल की बात बताएं करें न कोई झोल समझ लो। कपटी यार से तुम रहो दूर ढोंगी ओढ़े खोल समझ लो। अपने मित्र से दगा करो न   खोला करो न पोल समझ लो।  मदद करे विपत्ति में सदैव  दोस्त वही अनमोल समझ लो।   यारी करना सोच समझ कर इस राह बहुत झोल समझ लो। ग़ज़ल   मैं नहीं चाहती थी करना प्यार, क्या करूं पर ये दिल कर ही सका न इंकार क्या करू।   रहना चाहा सदा अकेले ही जग में पर दिल के हाथों मैं हो गई लाचार क्या करूं। ज़ख्म बहुत गहरा किसी के वेवफाई का  रंग प्यार का भर दिया बेशुमार क्या करूं। नैनों में न जाने उनके कैसी थी कशीश