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शंभुनाथ अरूनाभ (कवि और लेखक) की कविता विचलन

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शंभुनाथ अरूनाभ (कवि और लेखक)   विचलन   आत्मा के सरोवर से निकलकर हृदय के पौधशाला में अंकुरित हुआ मैं   मस्तिष्क अभिभावक की देख लेख में मुझे होना था जवान कद्दावर बृक्ष की तरह   सुनियोजित षड्यंत्र के द्वारा मेरे अभिभावक को नशेड़ी बना दिया गया   मेरे जवान होने से पहले ही मेरे नशेड़ी अभिभावक ने मुझे भेज दिया उस ओर जहाँ नागफनी के जंगल थे और मुझे गुजरना था नंगे पाँव   नागफनी के जंगल से गुजरते हुए मेरा नागफनी में तब्दील हो जाना तय ही था और एक दिन मैं नागफनी हो गया   मेरे गिर्द फैलती सी गई संवेदनहीन मरुभूमि अछोर जहाँ अंध प्रतियोगिता का भयावह विस्तार था सफलता-असफलता की रेत धूर्त्तता की ढूहें और इर्ष्या की कँटीली झाड़ियाँ प्रेम और निश्छलता का जलाशयय नहीं था दूर-दूर तक   यदि मैं होपाता हरा भरा कद्दावर बृक्ष तो अपनी सबसे खूबसूरत टहनी पर फूल ही नहीं खिलाता नुकील-पैने काँटे भी उगाता   हवाओं के संग हरियाली का झूला ही नहीं झूलता हरियाली नोचने वाले हाथों को भी बिंधता   कुलांचे भर रही खुशहाली का अंजन ही नहीं करता सात समंदर पार से आये आखेटक की आँख भी फोड़...

सुरेन्द्र भारती जी(गीतकार) के गीत चुपके से सनम तुम आ जाना

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- सुरेन्द्र भारती विमल भारती भवन त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल, बिहार     चुपके से सनम तुम आ जाना   ढ़ल जाए जब शाम सुहानी, चुपके से सनम तुम आ जाना।   आए जब पूनम की रजनी, विरही बन जाना तुम सजनी, चमकती चन्द्र-चाँदनी में चुपके चकई बन आ जाना।   कुहू-कुहू कोयल की बोली, जन्म-मरण तो एक पहेली, मिलन-विरह के जीवन में चुपके मीरा बन आ जाना।   दमके जब-जब धटा-दामिनी,  दादुर गाये राग-रागिनी, तिमिर सुसज्जित इस यामिनी में चुपके से प्यार जता जाना। .................................. इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं कवियों/लेखकों द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास है। धन्यवाद। Please tap on link 👇 to read more blogs  भोला पंडित "प्रणयी" जी  के गीत-खण्ड ' खर्च हुए हैं पिघल-पिघल कर'  सुबोध कुमार "सुधाकर" जी की रचना मुझको कोई बुला रहा है । सुरेन्द्र भारती जी (गीतकार/गजलकार) के गजल के लिंक सुरेन्द्र भारती जी की गजल भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों सुरेन्द्र भारती जी के कविता का लिंक Will be updated Click on link to view more   ध्रुव नारायण सिंह राई की ग़...

विनीता राई की कविता माँ

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  विनीता राई शिक्षा - एम. ए. (अंग्रेजी) माँ तेरी छाती से लगाना माँ बगावत की उस आँधी में कितनी बेगानी हो गयी मैं नहीं जानी सुख का उजियारा माँ की वो भोली सूरत ।   तुझमें हीं तो ईश्वर है मैं खोजती रही जग सारा सफर सारा था मेरा अकेला कोई मिला पर तुझ जैसा नहीं अब लौट आऊ मैं तेरे आंगन माँ।   तू मूझे पहले जैसे प्यार करना मूझे डाँटना, मुझे दुलारना माँ तेरी बेटी की अन्तर कुरूपता को अपने सीने से लगा पवित्रता देना माँ मूझे तूँ फिर से गले लगाना माँ।   कुछ पाने को चली थी कितनी दूर चली थी तेरे नजरों से मैं जीत आँऊगी यह सोच चली थी बड़ा लम्बा सफर था वो माँ तेरी बेटी थक लौट आयी माँ। .... इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं कवियों/लेखकों द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास है। धन्यवाद। Vinita Youtube channel, please click on link👇 ABC Vinita   Click on link to read more👇 विनीता राई की कविता कविताएँ ग़ज़ल -ध्रुव नारायण सिंह राई/आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है प्रतिभा कुमारी जी की गजलें   डॉ. अलका वर्मा जी की कविता उत्तर दे   ...

जल - ई. आलोक राई

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जल एक अमुल्य संसाधन होने के साथ साथ हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है जिसे हम उपयोग में लाते है और बिना इसके हमारा जीवन असम्भव है। यह जीवन देने के साथ साथ अपने गुण जो किसी भी चीज में अपना उसी आकार में ढलना सिखाती है की इसके पार्दर्सीता गुण के साथ साथ स्थिति अनुसार हो जीवनदायी होना। यह जीवनदायी है तो जीवन लेती भी है। जल पर मेरी यह कविता आपके समक्ष प्रस्तूत है                                                                                                              धन्यवाद। ई. आलोक राई शिक्षा-  बी.टेक. इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग, बी.एड. जल जल श्रोत भू पर वाष्पित हो बनता बादल रचता दृश्य इन्द्रधनुष अम्बर से बरस-बरस पहुँचे धरती पर करता माटी गीली अंकुर लेते बीज फैलती हरियाली  चहो दिशा बहती शीतल सी पवन पेय है जल भोजन ...

जीवन - ई. आलोक राई

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  ई. आलोक राई शिक्षा- बी.टेक. इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग, पत्रिकाओं में प्रकाशित - क्षणदा (त्रैमासिक), संवदिया (त्रैमासिक), जन आकांक्षा  जीवन   सरसराता पवन खिले फूलों  और भवरों का गूँजन इस नभ तल में  हुँ मैं भी इस छोर से उस डोर को पकर के चला अभी है नैया  बीच मजधार लगा जोर  करना पार इच्छा, कर्म, जिम्मेवारी आती जीवन में कर्म अगर लक्ष्य रहा क्या बाकी पूरा होता मन बुदबुदाये कभी संसय तो कभी दृढ़ हो जाए  इच्छाएं अनंत ले जाती जिम्मेवारी फिर पुकारती लिये सोच कर्मो की और इच्छाएं  मंडराते बादलों पर  मन का विचरन  और निज धरा पर स्वयं का कर्मबन्धन। ......................... Click on link to read more ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता अभाव  सुरेन्द्र भारती जी(गीतकार) के गीत चुपके से सनम तुम आ जाना सुबोध कुमार "सुधाकर" जी की रचना मुझको कोई बुला रहा है। कवि महेन्द्र प्रसाद जी की कविता प्रगति-पथ  भोला पंडित "प्रणयी" जी के गीत-खण्ड ' खर्च हुए हैं पिघल-पिघल कर'  Read more some related and other blogs युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाका...