जीवन - ई. आलोक राई

 

ई. आलोक राई
शिक्षा- बी.टेक.
इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग,
पत्रिकाओं में प्रकाशित - क्षणदा (त्रैमासिक),
संवदिया (त्रैमासिक), जन आकांक्षा 















जीवन 

सरसराता पवन
खिले फूलों 
और भवरों का गूँजन
इस नभ तल में 
हुँ मैं भी
इस छोर से
उस डोर को
पकर के चला
अभी है नैया 
बीच मजधार
लगा जोर 
करना पार

इच्छा, कर्म, जिम्मेवारी
आती जीवन में
कर्म अगर
लक्ष्य रहा
क्या बाकी पूरा होता
मन बुदबुदाये
कभी संसय तो
कभी दृढ़ हो जाए 

इच्छाएं अनंत ले जाती
जिम्मेवारी फिर पुकारती
लिये सोच कर्मो की
और इच्छाएं 
मंडराते बादलों पर 
मन का विचरन 
और निज धरा पर
स्वयं का कर्मबन्धन।
.........................



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Comments

  1. बहौत हीं अच्छी कविता है।।।जीवन के लक्ष्य को अपने कर्मों से संबंध बनाकर चलना काफी कठिन होता है और यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो हमारे जीवन नव रस और उमंग से भर उठेगा।
    लेखनी काफी सराहनीय है और बेहद तारीफेकाबिल।

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