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सियाराम यादव मयंक जी की गजल

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  सियाराम यादव मयंक गजल -01 जिन्दगी  का  मजा लीजिए। हर किसी से दुआ लीजिए।। रुक गया  राह  में जो कहीं।  बोझ उसका उठा लीजिए।। तीरगी   है   भरी   राह   में। दीप अपना जला लीजिए।। मिल गया  गर कहीं आइना। दाग  दामन  छुपा लीजिए।। भर  रहा  रंज से  मन जभी।  कुछ घड़ी गुनगुना लीजिए।। जो  कहीं  खा   रहे   ठोकरें।   पास उसको बुला लीजिए।। होंठ हॅंसता नहीं अब मयंक। कुछ पहर मुस्कुरा लीजिए।।                  --०-- गजल -02 एक  तारा  टिमटिमाता   जल  रहा  है  आजतक। अनवरत  वह  तारीकों  से लड़ रहा है आजतक।। साथ  मिलकर  जो समन्दर से निकाला था सुधा। घूॅंट  पीने  के लिए  दर-दर  भटकता  आजतक।। मांग  अंगूठा  लिया सिर को किया धड़ से अलग। उस  कहानी की हकीकत कह रहा है आजतक।। जो  यहाॅं  आया  कभी  था  पेट भरने  के  लिए। दूसरों की  रोटियों  पर  पल  रहा  है आजतक।। जो समय के  पंख  से  उड़ना नहीं सीखा कभी। इस जहां में हाथ अपना मल रहा है आजतक।। खुल गया है  राज फिर भी  चाॅंद मामा  हैं  बने। एक तोता की तरह बस रट  रहा है आजतक।। आ  गया  विज्ञान  युग  भगवान हैं बनते मयंक। आदमी ही आदमी को  गड़  रहा है आजतक।।                      

Bharat Prasad 'Bhushan' poetry An Old Man

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  Bharat Prasad 'Bhushan' Ex. Head of the Department English L. N. Science College, Triveniganj,   Supaul (Bihar) Meet the author Bharat Prasad "Bhushan" and his poem with this blog post. By the way these poems are in series and five part. Here I am presenting only two, one is first and other is last part of poem of the series so as otherwise this post will not to be much lenghthy. In the future post I will post the other part of this poem to complete the poem series.                       "A Tireless Traveller" is the upcoming book of Bharat Prasad "Bhushan" centers around the life story and struggles of the author himself it is purely based on experiences of life that he has gathered passing through the ordeals. Nothing Such as imaginary has been introduced in it. It depicts a true picture of the journey of life.  Poems by  Bharat Prasad 'Bhushan' An Old Man An old man's nothing but clown, Hope destroyed like a bereaved fawn, In freez

ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता बड़ा होना/साहित्य कोसी ब्लॉग

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  ध्रुव नारायण सिंह राई बड़ा होना बड़ा होना अकड़कर खड़ा होना नहीं बड़ा होना तो शालीन होना है जो  पेड़ नहीं फलते अकड़े होते हैं शून्य में तीर चलाते हैं फलदार पेड़ झुके होते हैं हिमालय उतरकर महासागर से मिलता है महासागर विनम्र बन क्षितिज को छूता है शांति से बात बनती है सद्भाव संसार जीतता है आशा जीवन देती है विश्वास उल्लासित करता है  आकाश को ऊँचाई पर गुमान नहीं झुककर धरती को चूमता है धरती विहँस बाहों में भर लेती है दोनों का अनोखा प्यार देखते बनता है                     ****** इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकार उनके पास हैं। धन्यवाद। ध्रुव नारायण सिंह राई जी कुछ पुस्तकों के छायाचित्र अंगूठा बोलता है खण्डकाव्य ध्रुव नारायण सिंह राई Face of the mirror Dhruva Narayan Singh Rai द्वापर गाथा महाकाव्य ध्रुव नारायण सिंह राई क्षणदा त्रैमासिक  (ध्रुव नारायण सिंह राई - वरीय संपादक) चौरासी (पत्रिका) ध्रुव नारायण सिंह राई - प्रधान संपादक  Dhruva Narayan Singh Rai - Editor in Flying with words जन तरंग   पत्रिका में संपादन - ध्रुव नारायण सिंह राई निराला:व्यक्त

टुकड़ा - टुकड़ा सच (कविता संग्रह) ध्रुव नारायण सिंह राई

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  टुकड़ा - टुकड़ा सच (कविता संग्रह)  ध्रुव नारायण सिंह राई  Now officially available by Swaraj Prakashan in Amazon, please tap below in get it link👇 टुकड़ा - टुकड़ा सच (कविता संग्रह)  ध्रुव नारायण सिंह राई 

अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई

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  Now officially available by Swaraj Prakashan in Amazon, please tap below in get it link👇 🔗 अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई  धर्म-प्राणीमात्र की सेवा रखना अतुलित स्नेह हृदय में करना कर्म सदैव महत्तर और सुजन-सत्कार निलय में। कर न्योछावर निज जीवन भी बनाना पतित को भी उत्तम यही सुकर्म, यही श्रेष्ठ धर्म सदा संसार में सुंदरतम।

द्वापर गाथा (महाकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई

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द्वापर गाथा  (महाकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई                          Now officially available by Swaraj Prakashan in Amazon, please tap below in get it link👇 द्वापर गाथा (महाकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य) ध्रुव नारायण सिंह राई टुकड़ा - टुकड़ा सच (कविता संग्रह) ध्रुव नारायण सिंह राई 

डॉ. विश्वनाथ सराफ की कविता छप्पन ईंच का धीरज

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डॉ. विश्वनाथ सराफ त्रिवेणीगंज, सुपौल बिहार मो. नं. : 94314506 एक परिचय- पेशे से चिकित्सक डा विश्वनाथ सराफ यों तो मरीजों की नाड़ियाँ देखते हैं और दवा देते हैं लेकिन जब माइक पकड़ते हैं तो अपनी कविताओं से व्यंग एवं हास्य का श्रोताओं को मरहम भी लगाते हैं। अच्छे वक्ता, मंच संचालक के साथ ही इनकी राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बराबर भागीदारी रहती है, ये जिला एथेलेटिक्स एसोसियन के अध्यक्ष भी है।  प्रस्तुत है उनकी एक कविता - छप्पन ईंच का धीरज        रूको रूको अब मत निकलो तुम लोग यहाँ के सहनशील हैं सब सह लेगें सड़कों पर कोरोना है आसमान से गिरता पानी एक ओर सागर की गरज है एक ओर चक्रवाती आँधी लोग यहाँ के बहुत साहसी तुफानों में भी पल लेगें मंदिर, मस्जिद बंद पड़े हैं गंगा जी में कुम्भ लगा है रेत किनारे ढ़ेर शवों का  ना जाने कब कौन मरा है लोग यहाँ के धैर्यवान है पथ्थर बनकर भी रह लेगें छप्पन ईंच का सीना लेकर महलों के भीतर तुम रह लेना शीशें की दीवारों के पीछे से मन की बातें तुम कह लेना लोग यहाँ के अच्छे श्रोता हैं मनोयोग से सब सुन लेगें रूको-रूको अब मत निकलो तुम लोग यहाँ के सहनशील हैं

विनीता राई की कविता कविताएँ

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  विनीता राई शिक्षा - एम. ए. (अंग्रेजी) कविताएँ कविताएँ हम नहीं लिखतें कविताएँ हमें लिखती है  यह एक मध्यस्तता है  कई विचारों के बीच । कविताएँ हमारी मित्र की भाँति हमारे विचारों को शब्द देती है  बिलखते अशांत मन को मानो  कुछ विश्वास दिलाती है । यह हमें तस्सलि देती है  की हमारी आवाज़ सुनी जाएगी इस काल में न सही  आने वाले काल में । यह एक पूल की भाँति मध्यस्थ बन खड़ी रहती है  सिकायतों का सफ़र जारी रहता है  इस कोने से उस कोने को । कविता लिखना और उसका पसंद किया जाना  मानो कवि की तत्काल जीत होती है  यह मान लिया जाता है  उसकी विचार सराही गयी है। ख़ुशी का एक ऐसा ज़रिया है  बिना फल मिले हीं मान लिया जाता है कि शब्दों की वाहवाही कोई भ्रम नहीं। जब कभी कविता लिखी जाती है  उसे हमारा लिखना माना जाता है,  मगर कविता को हम नहीं  अपितु कविता हमें लिखती है .............................................. इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास हैं।           धन्यवाद। Read more👇 विनीता राई की कविता माँ   ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता अभाव  डॉ. अलका वर्मा जी

डॉ. अलका वर्मा जी की गजल दिल को अब आराम कहां है

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  डॉ. अलका वर्मा दिल  को  अब  आराम  कहां है तुम बिन सुबह ओ शाम कहां है मात - पिता   की   पूजा   होती ऐसा    कोई    धाम    कहां    है सर्वधर्म    समभाव    जहां    हो बोलो !   ऐसा   गाम    कहां   है वनवासी   हो   वचन    निभाए वैसा    कोई    राम    कहां    है जो   बागों   को   महका   देता पहले -सा अब  आम   कहां   है ....................................... इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास हैं।           धन्यवाद। Read more 👇 डॉ. अलका वर्मा जी की कविता उत्तर दे सियाराम यादव मयंक जी की गजल   ‘द्वापर गाथा’ महाकाव्य का  काव्य-प्रसंग - डॉ. विनय कुमार चौधरी युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाकाव्य), 2012 का जीवन-मूल्य  डॉ. अलका वर्मा जी की लघुलथा यूट्यूब पर Tap on link to read more 👇 सुरेन्द्र भारती जी की गजल भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता अभाव  डॉ अलका वर्मा जी का परिचय डॉ अलका वर्मा  पूर्व प्राचार्य  त्रिवेणीगंज ,सुपौल 852139 बिहार मो 7631307900 ई मेल dralka59@gmail.com नाम: डॉ अलका वर्मा  पिता का नाम:स्व

डॉ. इन्दु कुमारी जी की रचना मेहनत के मोती, अपमान

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डॉ. इन्दु कुमारी     हिन्दी विभाग भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय  लालू नगर मधेपुरा बिहार   मेहनत के मोती किनारे बैठ जाने से कोई मोती तो नहीं मिलता। बिना बागों को सींचे ही, कोई फूल नहीं खिलता। बैठे यूं ही सोच जाएंगे आसमां को झुकाने की। लगाओ आग दिलों में, एक जोश दिखाने की। कड़ी मेहनत के दम पर ,मंजिल तो मिलती है। कदम कदम पर कांटे हैं, कोई फूल नहीं बोता। सपने जो सजाते हैं, गाफिल होकर नहीं सोता। बिना लक्ष्य के चलना, मंजिल तक नहीं जाती। कहीं चलने से पहले ही, ठिकाने ढूंढ है लेता। किनारे बैठ जाने से कोई मोती तो नहीं मिलता।  आलस्य वह दीमक है, जो बढ़ने ही नहीं देता। सारे सपने को खा जाते, सपने सजाने ना देता। आग लगा दो पानी में, शिखर के पार जाओगे। सारी मुसीबतों को , पानी तुम तो ही पिलाओगे। ............................................................ अपमान   क्यों करता अपमान किसी का, तूने कभी यह सोचा है। दुख दर्द भी होता होगा, क्या ऐसा सोच कर देखा है। सब कुछ नश्वर है जगत में, क्षणभंगुर संसार है। क्यों घमंड में घूम रहे हो, क्या यही तुम्हारा प्यार है। सब जीवो का स्वरूप है अपना, सबकी अपनी रेखा है।

सुरेन्द्र भारती जी की गजल भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों

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सुरेन्द्र भारती विमल भारती भवन त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल, बिहार मो-9570323666   भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों क्यों पहेली बुझा रहे हो दोस्तों? उजड़ी हुई जिन्दगी की राहों में क्यों बहार ला रहे हो देस्तों? रूठी बहारें क्यार के झोंकों में क्यों झूला झूला रहे हो दोस्तों? काली-काली धटाएँ की छाँहों में क्यों राह भटका रहे हो दोस्तों? मुरझा गये हैं सभी गुल गुलशन में क्यों मुझे इलजाम लगा रहे हो दोस्तों? लुट गये इश्क की जुदाई वेला में क्यों आशा बँधा रहे हो दोस्तों? उठा तूफां भारत भारती वतन में क्यों शमा जला रहे हो दोस्तों? ........... इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास हैं।           धन्यवाद। Tap on link to read more👇 भोला पंडित "प्रणयी" जी के गीत-खण्ड ' खर्च हुए हैं पिघल-पिघल कर'  सुबोध कुमार "सुधाकर" जी की रचना मुझको कोई बुला रहा है। सुरेन्द्र भारती जी(गीतकार) के गीत चुपके से सनम तुम आ जाना जल - ई. आलोक राई कवि महेन्द्र प्रसाद जी की कविता प्रगति-पथ   सुरेन्द्र भारती जी के कविता के लिंक Will be updated soon   ध्रुव