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प्रेम की पीड़ा से भरपूर एक काव्यकृति “कुछ तेरी कुछ मेरी बात” (पुस्तक समीक्षा) -डा. धर्मचन्द्र विद्यालंकार

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  🔗 कुछ तेरी कुछ मेरी बात डॉ. अलका वर्मा (पुस्तक-समीक्षा) प्रेम की पीड़ा से भरपूर एक काव्यकृति “कुछ तेरी कुछ मेरी बात” डॉ. धर्मचन्द्र विद्यालंकार कविता ही मानव मन की भावाभिव्यक्ति की प्रथम साधन है। सारे राग-विराग और घात-प्रतिघात उसी के माध्यम से व्यंजित होते रहते हैं मानव जीवन के । आप भी वही आपबीती के माध्यम से जगबीती का सशक्त साधन है। ‘कुछ तेरी कुछ मेरी बात’ नामक एक काव्यकृति हाल ही में हमारी नजरों से गुजरी है। जिसकी जो रचयिता कवयित्री है वे हैं डा. अलका वर्मा, बिहार की ऋतुपरिवर्तन का प्रबल प्रभाव आखिर कवि मानस पर होता ही है। शारदीय पूर्णिमा के आगमन की अगवानी वे इसी रुप में करती हैं- “प्रकृति ने किया श्रृंगार बहाकर बासन्ती क्यार। सुरभित है आंगन-द्वार मैया आने वाली है।” माँ की ममता के महत्व को भी यह कवयित्री बखूबी समझती है। उसकी ममता का कोई मूल्य कहाँ है। माँ के प्रति सहज समर्पण को ही वे सबसे बढ़कर भक्ति और पूजा मानती है- “करते हो माँ का तिरस्कार, सारे जप-तप तीर्थ बेकार। उनके चरणों में दुनिया है पड़ी, माँ का आँचल जादू की छड़ी।” अब ग्रामीण प्राकृतिक परिवेश में जो बड़े-बड़े बदलाव शहरीकर