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सुबोध कुमार "सुधाकर" जी की रचना मुझको कोई बुला रहा है।

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   सुबोध कुमार "सुधाकर" हे प्रिय! विश्वास कर लो। (खोल तरी पतवार) जो हुवा सब भूल जाओ, प्यार की बातें सुनाओ, भूल यह मुझसे हुई है, लो, इसे स्वीकार कर लो।                                 हे प्रिय! विश्वास कर लो। यह न कोई छल समझ तुम विवस जीवन-पल समझ तुम,             यह न कोई हार तेरी, जीत यह स्वीकार कर लो ।                                              हे प्रिय! विश्वास कर लो। अब न कोई शपथ खाओ, व्यर्थ आसू मत बहाओ, शेष जीवन के लिए तुम, फिर नया श्रृंगार कर लो।                                    हे प्रिय! विश्वास कर लो।                              .................... मुझको कोई बुला रहा है। (बीन के तार) रश्मि-करों से जगा कर,       मधुर कंठ से भुला रहा है।           मुझको कोई बुला रहा है।। वीणा रह-रह बजती मन की,       मधुर पिपासा प्रेम-मिलन की,           विटप-डाल पर बैठ विहंगम                जड़ चेतन को सुला रहा है।                   मुझको कोई बुला रहा है।। चमचम चमके नभ में चंदा,       छम-छम छमके भू पर क्षणदा,           आज सुधाकर मुक्त करों से                सुधा सृष्टि को पिला रहा है