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विनीता राई की कविता माँ

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  विनीता राई शिक्षा - एम. ए. (अंग्रेजी) माँ तेरी छाती से लगाना माँ बगावत की उस आँधी में कितनी बेगानी हो गयी मैं नहीं जानी सुख का उजियारा माँ की वो भोली सूरत ।   तुझमें हीं तो ईश्वर है मैं खोजती रही जग सारा सफर सारा था मेरा अकेला कोई मिला पर तुझ जैसा नहीं अब लौट आऊ मैं तेरे आंगन माँ।   तू मूझे पहले जैसे प्यार करना मूझे डाँटना, मुझे दुलारना माँ तेरी बेटी की अन्तर कुरूपता को अपने सीने से लगा पवित्रता देना माँ मूझे तूँ फिर से गले लगाना माँ।   कुछ पाने को चली थी कितनी दूर चली थी तेरे नजरों से मैं जीत आँऊगी यह सोच चली थी बड़ा लम्बा सफर था वो माँ तेरी बेटी थक लौट आयी माँ। .... इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं कवियों/लेखकों द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास है। धन्यवाद। Vinita Youtube channel, please click on link👇 ABC Vinita   Click on link to read more👇 विनीता राई की कविता कविताएँ ग़ज़ल -ध्रुव नारायण सिंह राई/आज फिर आस्माँ में घनी घटा छाने लगी है प्रतिभा कुमारी जी की गजलें   डॉ. अलका वर्मा जी की कविता उत्तर दे   ...

जल - ई. आलोक राई

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जल एक अमुल्य संसाधन होने के साथ साथ हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है जिसे हम उपयोग में लाते है और बिना इसके हमारा जीवन असम्भव है। यह जीवन देने के साथ साथ अपने गुण जो किसी भी चीज में अपना उसी आकार में ढलना सिखाती है की इसके पार्दर्सीता गुण के साथ साथ स्थिति अनुसार हो जीवनदायी होना। यह जीवनदायी है तो जीवन लेती भी है। जल पर मेरी यह कविता आपके समक्ष प्रस्तूत है                                                                                                              धन्यवाद। ई. आलोक राई शिक्षा-  बी.टेक. इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग, बी.एड. जल जल श्रोत भू पर वाष्पित हो बनता बादल रचता दृश्य इन्द्रधनुष अम्बर से बरस-बरस पहुँचे धरती पर करता माटी गीली अंकुर लेते बीज फैलती हरियाली  चहो दिशा बहती शीतल सी पवन पेय है जल भोजन ...

जीवन - ई. आलोक राई

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  ई. आलोक राई शिक्षा- बी.टेक. इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग, पत्रिकाओं में प्रकाशित - क्षणदा (त्रैमासिक), संवदिया (त्रैमासिक), जन आकांक्षा  जीवन   सरसराता पवन खिले फूलों  और भवरों का गूँजन इस नभ तल में  हुँ मैं भी इस छोर से उस डोर को पकर के चला अभी है नैया  बीच मजधार लगा जोर  करना पार इच्छा, कर्म, जिम्मेवारी आती जीवन में कर्म अगर लक्ष्य रहा क्या बाकी पूरा होता मन बुदबुदाये कभी संसय तो कभी दृढ़ हो जाए  इच्छाएं अनंत ले जाती जिम्मेवारी फिर पुकारती लिये सोच कर्मो की और इच्छाएं  मंडराते बादलों पर  मन का विचरन  और निज धरा पर स्वयं का कर्मबन्धन। ......................... Click on link to read more ध्रुव नारायण सिंह राई जी की कविता अभाव  सुरेन्द्र भारती जी(गीतकार) के गीत चुपके से सनम तुम आ जाना सुबोध कुमार "सुधाकर" जी की रचना मुझको कोई बुला रहा है। कवि महेन्द्र प्रसाद जी की कविता प्रगति-पथ  भोला पंडित "प्रणयी" जी के गीत-खण्ड ' खर्च हुए हैं पिघल-पिघल कर'  Read more some related and other blogs युगल किशोर प्रसाद / द्वापर गाथा (महाका...