प्रतिभा कुमारी जी, गीत - शबनम से भींगी गुलाब क्यों है

 

प्रतिभा कुमारी 
वरिष्ट कवियित्री एवं शिक्षिका
स्वतंत्र लेखिका एवं स्तंभकार
त्रिवेणीगंज, सुपौल,बिहार।
















गीत


शबनम से भींगी गुलाब क्यों है

रखी दिल पर खुली किताब क्यों है

ये किन खयालों का है बादल

अजी मौसम ए दिल खराब क्यों है।

वो दौर कब का गुजर चुका है

अभी तलक क्यों भुला न पाई

क्यों उंगलियों को अब मरोड़े

कि जिसको अब तक जता न पाई

तेरे अधर पर रुकी हुई सी

ये उनके खत का जवाब क्यों है

ये किन खयालों का है बादल

अजी मौसम ए दिल खराब क्यों है

महक रही हो हरिचंदन जैसे

इन सांसों में किसे गुन रही हो

क्यों धड़कनों के जिरह में गुम हो

इस मौन में किसे सुन रही हो 

इन नयन पटों को खोल सखी री

ये नलिन अक्षि पर हिजाब क्यों है

ये किन खयालों का है बादल

अजी मौसम ए दिल खराब क्यों है।✍️




प्रस्तुत कविता की समीक्षा 

हिन्दी कविता की सुपरिचित कवयित्री व शिक्षिका, अति पिछड़े अंचल सुपौल-बिहार की धरती से कविता की फसल उगाती, धैर्य की प्रतिमूर्ति आदरणीया बहन प्रतिभा कुमारी जी द्वारा रचित शीर्षक विहीन गीत कविता भाषा, भावप्रवणता और गेयता की दृष्टि से उच्च कोटि की रचना है।गीत सामान्यतया अपनी गेयता, शब्द शक्ति और उल्लास के लिए जाना जाता है। गीत मे लोक जीवन स्पन्दित होता है।गीत लोक की अमूल्य निधि है। गीत जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य को अपने अंक मे दुलराती है।गीत रण मे नही प्रेम मे फूटता, गीत विजय मे नही पराजय मे निकलता,गीत भोग मे नही जोग मे सृजित होता, गीत विकल्प मे नही संकल्प में जन्म लेता है।

जीवन का झंकार गीत है,

घूघरू का लय ताल गीत है।

कौन जीत की भाषा बोले,

घायल की हर हार गीत है।

गीत की महत्ता सर्वकालिक रही है। गीत हृदय से लिखे जाते,मन से गाये जाते और पिढ़ी दर पिढ़ी सुने जाते। कवयित्री द्वारा प्रेषित रचना को दो तीन बार पढ़ा।मै इसे गीत कविता, गजल कविता या कुछ और कहकर विधा के दायरे मे नही बांधना चाहता। इसका निर्णय कवयित्री स्वयं या शेष सुधिजन करे। हम इसे हृदय को स्पर्श करने वाली भाव प्रधान रचना स्वीकार करता हूँ। दुसरी बात आजकल कविता अपने प्रवाह मे बह रही है।नित नूतन कविता का अपने अपने ढंग से रचनाकार श्रृंगार करते है।कविता वही है बस रचनाकार अपने-अपने सलीके से अभिवादन करते है।" हरि अनन्त हरि कथा अनंता" की भावना से रचनाकार के भावों को ग्रहण करना सुधि पाठक का नैतिक धर्म है।कविता का आरम्भ ही कवयित्री प्रेम सौन्दर्य और मनुहार के भावभूमि पर उतर कर करती है।समान्यतया गुलाब प्रेम और सौन्दर्य का प्रतीक है। बाकी इसके गुण धर्म और प्रयोग के बारे मे आप सभी जानते है। न जानते हो तो त्रिलोचन की कविता-

तुम्हे याद है क्या उस दिन के, 

नये कोट के बटन होल मे।

हसकर प्रिये लगाई थी जब, 

वह गुलाब की लाल कलि।

को पूरा अवश्य पढ़ ले। खिले हुए गुलाब ओस की दुधमुही बूंदो से भीगने के बाद उसका सौन्दर्य द्विगुणित हो उठता। खुली किताब होना विल्कुल साफ सुधरा होने से है। खुली किताब होना का प्रयोग अनेक अर्थो मे होता है लेकिन यहाँ यह किताब हृदय पर है,वह भी खुली है। कही ऐसा तो नही उस भीगे गुलाब को आमंत्रण है?

उनका एक- एक प्रश्न भी जबाब- सा है,

श्रृंगार के नगर मे रूप गुलाब- सा है।

कोई तुम्हें ठीक से देखे, सुने, पढ़े तो सही,

तेरा दिल आइना है तो,चेहरा किताब-सा है।

     मौसम खराब हो और ख्यालो का बादल उमड़ घूमड रहा हो तो बरसात होगी। यहाँ प्रेम मे मौसम हृदयाकाश मे छाए है। बरसात तो हृदय और मन पर होनी है। बस प्रकृति को आलम्बन रूप मे रखे।

यहा रात अभी बाकी है,

वहा बात अभी बाकी है।

इस जीवन मे नेह की,

बरसात अभी बाकी है।

      बीते समय की स्मृतियों के सहारे कवयित्री प्रेम निवेदन की विविध भाव भंगिमाओ को व्यजित कर हृदय जीत ली। श्रृंगार रस मे नायिका द्वारा नायक को विविध भाव भंगिमाओ के द्वारा अपने तरफ खिचने की अदाओ का विवरण उपलब्ध है। यह सब क्रिया व्यापार उद्दीपन के रूप मे कार्य करते है। यहा भी कवयित्री ने उसी भाव मे आगे बढीं है। ऐसा कौन सा वह भाव है जिसको नायिका अब तक व्यक्त नही कर पाई? वह कौन सी बात है जिसे अधरो तक ले आकर नायिका रोक देती है? मेरी समझ से यह भाव ही इस रचना के सृजन की मूल स्रोत है। यहीं कही से कवयित्री के हृदय में यह रचना निकली है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है जब बादल आ गये, मौसम आ गये, गुलाब आ गया, खत आ गया उसके बाद भी नायिका जबाब देने मे संकोच करे तो वही जाने। हमारे यहा श्रृंगार रस मे पत्र की महती भूमिका है। उद्धव सतक मे बाबा उद्धव खुद डाकिया है, प्रिय प्रवास मे पवन और पीत पात ही पत्र है, बिहारी के यहा "कर ले----धरति समेट" जैसे तमाम दृष्टांत उपलब्ध है। इसके बाद भी वह भाव व्यक्त करने मे असमर्थ हो तो-

पत्र आए उनका तो, 

हृदय से लगा लेना।

जिने के लिए उसे ही,

ताबीज़ बना लेना।

     प्रेम मे महकना, चहकना, प्रिय का स्मरण करना,चर्चा करना, सोचना,स्वयं से संवाद करना, रोना, मुस्कुराना, गाना और स्वयं ही स्वयं को भूल जाना स्वाभाविक है। अंतिम पक्तियो मे वही संकोच तथा लाज प्रबल है।नलिनी का आशय कमलनी से, अक्षि का आशय आख से और हिजाब का आशय लाज से है। साहित्य मे आख की उपमा अनेको प्रकार से दी गयी है। लेकिन कमलनी से देकर कमलनयनी, मीन से देकर मीननयन, खंजन पंक्षी से देकर खंजनयन आदि मसहूर उपमान है। यहा कमलनयनी नायिका नयनो के पट खोलने मे शरमा रही है। हमारी समझ से साहित्य और श्रृंगार मे लाज का सौन्दर्य सबसे श्रेष्ठ होता है। रस का उत्कर्ष तभी तक है जब तक हया है बांकी बेहया तो आजकल सर्वत्र है।किसी भी अलभ्य सुन्दरी नायिका का सबसे प्रिय आभूषण लाज और मौन होता है।इस रचना को आद्योपांत पढ़ने के बाद हम कह सकते है कि यह रचना प्रेम और सौन्दर्य की अप्रतिम रचना है। हिन्दी ऊर्दू शब्दों का सुन्दर समन्वयन कविता को और अर्थवान बनाते है। हलाकि इसे अभी और परिमार्जित किया जाना आवश्यक है। समवेत रूप मे स्वच्छ श्रृंगार की इतनी सुन्दर और मनहर सर्जना के लिए कवयित्री प्रतिभा कुमारी जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

 पंकज कुमार शुक्ल
उत्तर प्रदेश
देवरिया


 







इस ब्लाग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकार उनके पास है। धन्यवाद।



रचनाकार का संक्षिप्त परिचय 

नामः प्रतिभा कुमारी
माता का नामः श्रीमती सरिता वर्मा
पिता का नामः श्री जगदीश लाल दास
पति का नामः श्री प्रमोद कुमार
पुत्रः पीयूस प्रसून(प्रहर्ष), उत्सव उत्कर्ष
स्थाई पताः ग्राम पोष्ट-बाजितपुर, थाना- भायाः त्रिवेणीगंज
                जिलाः सुपौल, पिनः 852139, बिहार।
वर्तमान पताः त्रिवेणीगंज, थाना-पोस्टः त्रिवेणीगंज
                    जिला-सुपौल, पिनः 852139, बिहार।
भाषाः हिन्दी
विधाः पद्य (गीत, गजल, कविता, मुक्तक)
प्रकाशित पुस्तकः रेत नहीं हूँ मैं (काव्य संग्रह)
प्रकाशन वर्षः दिसंबर 2019
शिक्षाः स्नातकोत्तर (हिंदी), बी एड,




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रेत नहीं हूँ मैं

'काव्य संग्रह'
प्रतिभा कुमारी


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