ध्रुव नारायण सिंह राई जी की रचना मेरी बाल सखी

 

घ्रुव नारायण सिंह राई


ग़ज़ल


चाहे रात जितनी भी हो, हो जाने दो

आज़ बात जितनी भी हो , हो जाने दो

दरमियाँ फ़ासिला मिट जाये, अच्छा

नजदीकी जितनी भी हो , हो जाने दो

बेलोस तुम, पर बेबाक हो जाओ

बेबाकी जितनी भी हो , हो जाने दो

कयूँ पशेमाँ होती हो मेरी हमराज़

मोहब्बत जितनी भी हो, हो जाने दो

बेजान बेलज़्ज़त बोसा भी क्या बोसा

यूँ लज़्ज़त जितनी हो, हो जाने दो

जीने के कई बहाने हैं जानेजानाँ 

मुलाकात जीतनी भी हो, हो जाने दो

भूल जाएँ सुरूर में कि हम क्या हैं

दीवानगी जितनी भी हो, हो जाने दो

शम्मा देखती है शबीना वाक़िआत

दिल्लगी जितनी भी हो, हो जाने दो

हम हों शुमार नादानों की सफ़ में

हाँ, तिश्नगी जितनी भी हो, हो जाने दो 

                    


          मेरी बाल सखी

          (चीलौनी नदी)


ऐ मेरी बाल सखी चीलौनी !

मैं हो गया बूढ़ा, तुम बूढ़ी

मेरी चमड़ी सिकुड़ गयी, तेरी चौड़ाई

मेरी कुछ झुक गयी कमर, तेरी कम गयी गहराई

मुर्झाया मेरा चेहरा, तुम क्षीण रहती सालों भर

पके आम बन रहे हम दोनों

फिर भी गिरने की नहीं फ़िकर

जो करना था कर रहा अभी तक

तुम भी करती आयी हो

मैं कहलाता बाबा सबका, तुम चिलौनी माई हो

जन-जन का भला ज़रूर करूँगा जबतक इस ठठरी में जान

तुमको भी करना यही धीरे-धीरे दे-देकर प्राण

ऐ सखी

चिंता मत करना

चाहे फेंके कचरा

बहाये शहर के नाले का पानी और धोये कपड़ा

चाहे कोई करे प्रवाहित पूजा का दोना

या कोई करे उत्सर्जित पचा अन्न घिनौना

तुम स्वीकारती शव को भी

क्यों न हो वह

जीव, जंतु, पशु या मानव का ही

स्वयं होकर विदूषित करती पावन सबको तुम ही

जूठन हो या हो जैसा भी अवशिष्ट पदार्थ

ग्रहण करती हो सदैव परमार्थ

तेरी पीठपर मिट्टीभर खड़े हो गये कितने घर

तेरे तट की सड़कों पर दौड़ती रहती हैं मोटर

कहीं वेणु पुल बनाया, तो कहीं बन गये कंक्रीट के सेतु

लोग रौंदते तेरी छाती अपने-अपने हित हेतु

निर्मम होकर बाँधा तुमको, कुंद हो गयी जलधार प्रखर

फिर भी तेरे ही पावन पानी में

करते सभी निमज्जन

माताएँ सूर्य को करतीं तेरा ही अर्घ्य अर्पण

सावन में जब तुम उमड़ी होती हो बन जाती हो दूती

लादकर धारा की पीठपर पहुँचाती पाति प्रीत की

ज़रा याद करना

जब बाढ़ में तुम उफनाती थी

हो जाती थी ज़्यादा चौड़ी तेरी छाती

तब मेरी कदली-नाव चलती थी कैसै बलखाती

मैं हर्षाता, तुम हर्षाती; मैं गाता, तुम भी गाती

मैं मोद मगन, तुम मोद मनाती

दो देह मगर एक जान रह जाती

जब मैं डुबकी लगाता था, तुममें अंदर समाता था

तुम मंद-मंद मुस्काती थी, ख़ुद को न छिपा पाती थी

अपना अशेष लुटाती थी, क्या कुछ भी शेष बचाती थी

एक अपूर्व परिधटना

हममें कभी न कुछ भेद रहा, सबकुछ सदा अभेद रहा

मैंने रेत का महल बनाया, तुमने हँसकर उसे बहाया

ऐसी-ऐसी हँसी-ठिठोली, प्यारी-प्यारी आँख-मिचौली

क्या कर सकती हो कभी विस्मृत

चिंता मत करना

चाहे जो भी करे कोई मग़रूर

ख़ुशियों से ख़ुद को न रखो दूर

सर्वहित शुभकामना

सिमटोगी जितना सिमटायेगा, सच है

ख़ुशी तुम्हारी, मगर सखी मेरी बात सुनो

चाहे जो भी हो जाये बरक़रार अपना वज़ूद रखो

मैं जीवित हूँ, तुमको भी ज़िंदा रहना है

तेरा-मेरा जीवंत प्यार कितना शुभग सलोना है

जबतक जीयेंगे, साथ जीयेंगे

जब मरेंगे, साथ मरेंगे

हाथों पर हाथ रहेंगे, होठों पर होठ रहेंगे

नीचे पाताल, ऊपर आकाश रहेंगे

चाँद, तारे, सूरज सारे प्यार अनोखा देखेंगे

कुछ न रहेगा सपना

ऐ मेरी बाल सखी

जितना भी कोई करे ग़रूर

तुमको करना चाहे मज़बूर

कभी न झुकना

जैसे भी हो बहती रहना

स्वाभिमान से ऊँचा रखना सर

तुमको लूँगा बाँहों में भर

हलका हो जाना मेरा भाल चूमकर

तेरी ऊरुओं पर जब रखूँ मस्तक

मेरा मुखमंडल कुंतल से आच्छादित करना

जैसा करती थी पहले वैसा ही करना

                                                     


इस ब्लाग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकार उनके पास है। धन्यवाद।



संक्षिप्त परिचय

नाम- ध्रुव नारायण सिंह राई

जन्म तिथि- 15 जनवरी 1954

शिक्षा- एम. ए. (हिन्दी ), एम. ए. (अंग्रेजी)


प्रकाशित कृति- 

अँगूठा बोलता है (खण्डकाव्य)

द्वापर गाथा (महाकाव्य)

टुकड़ा-टुकड़ा सच (कविता संग्रह)

Face of the mirror (Subjective essays)


संपादित कृति- 

निरालाः व्यक्ति और साहित्य

जन-तरंग (पत्रिका)

वरीय संपादकः क्षणदा (त्रैमासिक पत्रिका)

प्रधान संपादकः चौरासी Journal of Mini Khambuwan (पत्रिका)

Flying with words (Stories)


प्रकाश्य कृतिया- 

एहसास ए सफर (ग़ज़ल संग्रह)

आईना ए हक़िकत (ग़ज़ल संग्रह)

गाँव की औरतों का कोरस (कविता संग्रह)

ऋतुरंग (समयगीत)

अनुगुञ्ज (भक्तिगीत)

तानपूरा (कहानियाँ)

रमणीयार्थ का अर्थ (आलेख)

King's Megaphone (Poems)

A Towering Personality (Biography) Late. Dr. Mahabir Prasad Yadav


सम्मान/पुरस्कार- 

कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान

गज़ल-सम्राट (हिन्दी विकास सेवा संस्थान कुशीनगर उ.प्र.)

बिहार काव्यरत्न (अखिल भारतीय कला सम्मान परिषद कुशीनगर उ.प्र.)

राष्ट्रभाषा आचार्य (हिन्दी विकास सेवा संस्थान कप्तानगंज उ.प्र.)

न्यू ऋतंभरा साहित्य मणि सम्मान (छ. ग.)

काव्य गौरव सम्मान (आकृति प्रकाशन, पीलीभीत उ.प्र.)

साहित्य कमल सम्मान (आकृति प्रकाशन, पीलीभीत उ.प्र.)

काव्य श्री सम्मान (तरूणोदय सांस्कृतिक विकास परिषद्, खगहा पूर्णियाँ, बिहार)

साहित्य सेवा सम्मान (महिमा प्रकाशन एवं छत्तीसगढ़ शिक्षक साहित्यकार मंच)

देवभूमि साहित्य रत्न (देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़)

भारत गौरव सम्मान (ऋचा प्रकाशन, कटनी म. प्र.)

न्यू ऋतंभरा भारत भारती साहित्य सम्मान 2010 (छ.ग.)

साहित्य रत्न सम्मान (तरूणोदय सांस्कृतिक विकास परिषद्, खगहा पूर्णियाँ, बिहार)

साहित्य सत्यम् (साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक वाग्वैचित्र्य मंच, अररिया, बिहार


पत्रिकाओ में- जन-तरंग, जन आकांक्षा, क्षणदा, लहक (कोलकाता), परती पलार, संवदिया, ऋचा, संकल्प (हिन्दीअकादमी हैदराबाद), प्रसन्न राधव निर्भिक एवं राष्ट्रीय निष्पक्ष साप्ताहिक, शम्बूक मासिक, विप्र पञ्चायत, तरूणोदय, वैश्यवसुधा, विचार दृष्टी, भाग्य दर्पण, मंडल विचार, भारतवाणी, साहित्याञ्चल, नारी अस्मिता, शब्द कारखाना, लफ़्ज़, प्राच्य प्रभा, नई ग़ज़ल (त्रैमासिकी)


साहित्य संकलन पुस्तकों में- 

कविता कोसी

अखिल भारतीय साहित्य संग्रह-2007, न्यू ऋतंभरा साहित्यमंच

अखिल भारतीय साहित्य संग्रह-2010, न्यू ऋतंभरा साहित्यमंच

कोसी अंचल की लधुकथाएँ

देशी-विदेशी कवि, कवयित्रियाँ

पूरब-पश्चिम, अखिल भारतीय साहित्यकार-अभिनन्दन समिति, मथुरा

विश्वांचल (अन्तर्राष्ट्रीय कविता-संकलन) अखिल भारतीय साहित्यकार-अभिनन्दनस मिति, मथुरा

शुन्य से शिखर तक, राष्ट्रीय काव्य संकलन

संगमन, देव भूमि साहित्यकार मंच

देश प्रदेश (अन्तर्राष्ट्रीय काव्य-संकलन)

आत्मा की पुकार (नवीनतम कविता संग्रह)

स्त्री विमर्श, समकालीन कविता का नया आयाम

तारानन्दन तरूण का रचनालोक

सदी के पार की गजले

Writing for me and Writing for you, Poems and stories.

Writing Something Interesting for a Change, Poems and Stories by teachers, The English and Foreign Languages University, Hydrabad



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