सुरेन्द्र भारती जी की गजल भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों
सुरेन्द्र भारती विमल भारती भवन त्रिवेणीगंज, जिला- सुपौल, बिहार मो-9570323666 |
भटके अँधेरे के हम सफर दोस्तों
क्यों पहेली बुझा रहे हो दोस्तों?
उजड़ी हुई जिन्दगी की राहों में
क्यों बहार ला रहे हो देस्तों?
रूठी बहारें क्यार के झोंकों में
क्यों झूला झूला रहे हो दोस्तों?
काली-काली धटाएँ की छाँहों में
क्यों राह भटका रहे हो दोस्तों?
मुरझा गये हैं सभी गुल गुलशन में
क्यों मुझे इलजाम लगा रहे हो दोस्तों?
लुट गये इश्क की जुदाई वेला में
क्यों आशा बँधा रहे हो दोस्तों?
उठा तूफां भारत भारती वतन में
क्यों शमा जला रहे हो दोस्तों?
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इस ब्लॉग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकर उनके पास हैं। धन्यवाद।
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सुरेन्द्र भारती जी के कविता के लिंक
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ध्रुव नारायण सिंह राई/गजल -देखकर भी नजर चुराना |
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