डॉ. विश्वनाथ सराफ - कोशी के रेत पर बोयी जाती कविता
डॉ. विश्वनाथ सराफ त्रिवेणीगंज, सुपौल बिहार मो. नं. - 94314506 |
एक परिचय-
पेशे से चिकित्सक डॉ. विश्वनाथ सराफ यों तो मरीजों की नाड़ियाँ देखते हैं और दवा देते हैं लेकिन जब माइक पकड़ते हैं तो अपनी कविताओं से व्यंग एवं हास्य का श्रोताओं को मरहम भी लगाते हैं। अच्छे वक्ता, मंच संचालक के साथ ही इनकी राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बराबर भागीदारी रहती है, ये जिला एथेलेटिक्स एसोसियन के अध्यक्ष भी है। आपकी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती है।
प्रस्तुत है आपकी कोसी पर एक रचना
कोशी के रेत पर बोयी जाती कविता
ये कोशी है
यहाँ रेत पर
बोयी जाती है कविता
जैसे समंदर के किनारे
रेत पर उकेरी जाती है
मूर्तियां
बोलती नहीं
पर आँखों से
सब कह जाती हैं
सागर की लहरों की चंचलता
बनते विगड़ते घरौंदे
मछुआरों का जीवन
गहराईयों में समाती रेत
सब समझा जाती है
मूर्तियाँ
ऐसी है कोशी की रेत पर
बोयी गयी कविता
सब कह जाती है
कोशी की चंचल धारा का क्रोध
अपने ही गाँव से
निर्वासित किसान
बाँध के किनारे झोपड़ी
धूप, पानी और जाड़े में ठिठुरते
घूरे की आग से
बदन ढ़कते बुढ़े बच्चे
धुल उड़ाती अफसरों की गाड़ियाँ
कमाने परदेश जाते नौजवान
सब सच कह जाती है
आईना दिखा जाती है
कोशी के रेत पर
बोयी गयी कविता
ये कोशी है यहाँ
रेत पर बोयी जाती है
कविता।
घुटन अभी बाकी है
खिड़की खुली है
सलाखें अभी लगी हैं
सुरमई धुप आती है
हवा सलाखों से टकरा
अभी भी लौट जाती है
अभी भी नहीं खुला है
बंद कमरे का दरवाजा
अंदर घुटन
अभी भी बाकी है।
सुरमई धुप आती है
हवा सलाखों से टकरा
अभी भी लौट जाती है
अभी भी नहीं खुला है
बंद कमरे का दरवाजा
अंदर घुटन
अभी भी बाकी है।
इस ब्लाग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकार उनके पास है। धन्यवाद।
डॉ. विश्वनाथ सराफ जी के कविता वाचन का वीडियो
डॉ. विश्वनाथ सराफ जी स्मारक के उद्घाटन प्रोग्राम में |
डॉ. विश्वनाथ सराफ जी हिंदी दिवस पर लाइव कार्यक्रम संचालन करते हुवे, वीडियो लिंक पर क्लिक करें ▶️ |
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