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प्रतिभा कुमारी जी, गीत - शबनम से भींगी गुलाब क्यों है

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  प्रतिभा कुमारी   वरिष्ट कवियित्री एवं शिक्षिका स्वतंत्र लेखिका एवं स्तंभकार त्रिवेणीगंज, सुपौल,बिहार। गीत शबनम से भींगी गुलाब क्यों है रखी दिल पर खुली किताब क्यों है ये किन खयालों का है बादल अजी मौसम ए दिल खराब क्यों है। वो दौर कब का गुजर चुका है अभी तलक क्यों भुला न पाई क्यों उंगलियों को अब मरोड़े कि जिसको अब तक जता न पाई तेरे अधर पर रुकी हुई सी ये उनके खत का जवाब क्यों है ये किन खयालों का है बादल अजी मौसम ए दिल खराब क्यों है महक रही हो हरिचंदन जैसे इन सांसों में किसे गुन रही हो क्यों धड़कनों के जिरह में गुम हो इस मौन में किसे सुन रही हो  इन नयन पटों को खोल सखी री ये नलिन अक्षि पर हिजाब क्यों है ये किन खयालों का है बादल अजी मौसम ए दिल खराब क्यों है। ✍️ प्रस्तुत कविता की समीक्षा   हिन्दी कविता की सुपरिचित कवयित्री व शिक्षिका, अति पिछड़े अंचल सुपौल-बिहार की धरती से कविता की फसल उगाती, धैर्य की प्रतिमूर्ति आदरणीया बहन प्रतिभा कुमारी जी द्वारा रचित शीर्षक विहीन गीत कविता भाषा, भावप्रवणता और गेयता की दृष्टि से उच्च कोटि की रचना है।गीत सामान्यतया अपनी गेयता, शब्द शक्ति ...

डॉ. सुषमा दयाल जी की रचना “चौखट से चाँद तक”

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  डॉ. सुषमा दयाल वरीय शिक्षिका, एम एस कुशहा त्रिवेणीगंज सुपौल। एक पड़ी सबपे भारी हर लड़की ज्योति नही बनेगी पद पाते पति को ही छोड़ देगी। जरा शर्म करो ,जिसने तेरे साथ लिए थे सात फेरे परिजनों के सामने जिसने थामा तेरा हाथ आज तूने छोड़ दिया उसका ही साथ।। तुमने तो दिखा दी अपनी औकात औरतों को तुमने किया कलंकित बहुओं को आगे बढ़ने से किया प्रतिबंधित।। माफ नही करेगी तुम्हारी ही बेटियां, कितनी सुननी पड़ेगी उल्टी सीधी खड़ी खोटियां।। जरा तो सोच लेती भविष्य को पत्नी होने के अस्तित्व को।। शराबी पति को भी नारी ने व्रत त्योहार करके लोक लाज को ढोकर जीवन को संभाला है। तूने तो जीते जी आलोक के रहते मनीष जी के साथ प्रेम  करके अपने ही चरित्र का किया  घोटाला है।। कितनी बददुआ तुम्हे है,मिल रही कोई नही कह रहा तुम्हे सही। काम ही तुमने ऐसा किया है समाज में ज्योति फैलाने की जगह कीचड़ उछाला है।। सुख के दिन मै तुम्हे कोई और भा गया, खून पसीना एक कर  पति ने तुम्हे पढ़ाया,  इसी की सजा तूने उसे फूट फूट कर रुलवाया।। बहुत अरसों के बाद ही तो समाज में लोगों का नजरिया बदला था, बेटी बहुओं को एक  सम...

डॉ. इन्दु कुमारी हिन्दी विभाग भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की रचना साहित्यकोसी पर

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डॉ. इन्दु कुमारी    हिन्दी विभाग भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय  लालू नगर मधेपुरा बिहार शिक्षक की महिमा मैं शिक्षक हूं शिष्य बन सीखो लाली लाल। । मेरे उर में ज्ञान का है भंडार विशाल। । बच्चों अपने ध्यान का, विद्या अध्ययन काज।। सदा करो उपयोग तुम, विद्या विनय विराज।।  जीवन जीने की कला मैं नित रही सिखाएं।  सीखो मन उल्लास भर, समय फिसलता जाए। । जो भी बच्चे मानते ,है शिक्षक की बात।।  पढ़ने में वह ध्यान दे, तज सारे उत्पात।।  बच्चों के हित के लिए शिक्षक करते काम।। सदा चाहते शिष्य को मिले उचित परिणाम।। मात-पिता से कम नहीं शिक्षक का स्थान।। बच्चों को शिक्षक सदा देता उत्तम ज्ञान।। शिक्षक के प्रति हम रखें, मन आदर सम्मान।। शिक्षक ही संसार में, दे जीवन का ज्ञान।।   शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाई  चौठ चंद्र की पूजा चौठ चंद्र की पूजा सखी आज मनाओ रे , खीर पुरी और फल फूलों से थाल सजाओ रे। मिट्टी के बर्तन पहूंचाने कुम्हार भाई आते हैं,  दो दिन पहले से सब मिलकर दही जमाते हैं।  धो-धो कर कूट पीसकर आटा ले आओ रे, चौठ चंद्र की पूजा सखी आज मना...

ध्रुव नारायण सिंह राई जी की रचना मेरी बाल सखी

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  घ्रुव नारायण सिंह राई ग़ज़ल चाहे रात जितनी भी हो, हो जाने दो आज़ बात जितनी भी हो , हो जाने दो दरमियाँ फ़ासिला मिट जाये, अच्छा नजदीकी जितनी भी हो , हो जाने दो बेलोस तुम, पर बेबाक हो जाओ बेबाकी जितनी भी हो , हो जाने दो कयूँ पशेमाँ होती हो मेरी हमराज़ मोहब्बत जितनी भी हो, हो जाने दो बेजान बेलज़्ज़त बोसा भी क्या बोसा यूँ लज़्ज़त जितनी हो, हो जाने दो जीने के कई बहाने हैं जानेजानाँ  मुलाकात जीतनी भी हो, हो जाने दो भूल जाएँ सुरूर में कि हम क्या हैं दीवानगी जितनी भी हो, हो जाने दो शम्मा देखती है शबीना वाक़िआत दिल्लगी जितनी भी हो, हो जाने दो हम हों शुमार नादानों की सफ़ में हाँ, तिश्नगी जितनी भी हो, हो जाने दो                                 मेरी बाल सखी            (चीलौनी नदी) ऐ मेरी बाल सखी चीलौनी ! मैं हो गया बूढ़ा, तुम बूढ़ी मेरी चमड़ी सिकुड़ गयी, तेरी चौड़ाई मेरी कुछ झुक गयी कमर, तेरी कम गयी गहराई मुर्झाया मेरा चेहरा, तुम क्षीण रहती सालों भर पके आम बन रहे हम दोनों फिर भ...

डॉ. अलका वर्मा

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डॉ. अलका वर्मा त्रिवेणीगंज, सुपौल बिहार मो- 7631307900 ई मेल- dralka59@gmail.com   गजल   दिल रोता है जब रिसती है कविता चीर चट्टानों को बहती है सरिता। अपनी ही देख दुर्दशा इस जग में चीखती, तड़पती, रोती है बबिता। करती प्रकाशित पूरे संसार को  निशिवासर चल कभी न थकती सविता। घबराओ नहीं रखो विश्वास सदा  तेरा भला ही करेंगे परमपिता। मां ममता का अनमोल है खजाना तो रखवाला है परिवार का पिता। ग़ज़ल   मित्रता का न मोल समझ लो धन सके नहीं तोल समझ लोl यारी हो कृष्ण सुदामा सी मित्रों की जय बोल समझ लो। अपने दिल की बात बताएं करें न कोई झोल समझ लो। कपटी यार से तुम रहो दूर ढोंगी ओढ़े खोल समझ लो। अपने मित्र से दगा करो न   खोला करो न पोल समझ लो।  मदद करे विपत्ति में सदैव  दोस्त वही अनमोल समझ लो।   यारी करना सोच समझ कर इस राह बहुत झोल समझ लो। ग़ज़ल   मैं नहीं चाहती थी करना प्यार, क्या करूं पर ये दिल कर ही सका न इंकार क्या करू।   रहना चाहा सदा अकेले ही जग में पर दिल के हाथों मैं हो गई लाचार क्या करूं। ज़ख्म बहुत गहरा किसी के वेवफाई का  रंग प्...

जन लेखक संघ के महासचिव महेन्द्र नारायण पंकज जी के प्रबंधकाव्य की कुछ पंक्तियाँ

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डॉ. महेन्द्र नारायण पंकज महासचिव, जन लेखक संघ युवा वर्ग ही नये राष्ट्र का, बन पाता निर्माता है। जब-जब देश होता है दुर्बल, वह नूतन शक्ति जगाता है।। त्यागी, स्वार्थ रहित मानव जब जनहित में कुछ करता है। इसमें क्या सन्देह वही, जनगण में नवबल भरता है।।                                                                                                                                                    डॉ. महेन्द्र नारायण पंकज   इस ब्लाग की रचनाये स्वयं लेखकों के द्वारा दी गई है तथा इन रचनाओं का स्वताधिकार उनके पास है। धन्यवाद। संक्षिप्त परिचय जन्म- थाना-कुमारखण्ड, जिला- मधेपुरा (बिहार) शिक्षा- एम. ए, ग्राम- भतनी, बी. टी. साहित्याच...